भजन : मेरे गुरु हैं तारनहार

मेरे गुरु हैं तारणहार करते सबका बेडा पार
"शुभ" चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार

श्री मुख से बहती निर्मल ज्ञान धारा
गुरु चरणों में अब वैकुण्ठ हमारा
करने को प्रभु का दीदार, तरसे आँखें लगातार
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

मन से है नाम गुरु का जिसने उचारा
हुई दूर दुःख की छाया फैला उजियारा
करने भक्तों का कल्याण, खुद आये हैं भगवान्
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

जन्मों से दर-दर रहा मैं भटकता
काम क्रोध मोह कभी माया में अटका
अब तो जागे मेरे भाग्य, मिला बापू का दरबार
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

लेकर नाम तुम्हारा जीते हैं हम
मोह माया से अब बचाओ हमें तुम
जपते हरि ॐ- हरि ॐ आप, हम भी जपेंगे दिन रात
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

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