आये प्रभु जी सजा है दरबार



यह भजन पूज्य श्री श्री भारती श्रीजी के मोदीनगर में सत्संग कार्यक्रम (22-23 दिसम्बर 2012) को उनके स्वागत में लिखा गया और श्रीजी की अनुमति पाकर सत्संग के समय गाया गया। 
ॐ ॐ ॐ 

आये प्रभु जी सजा है दरबार, करो दर्शन हो जाओ भव पार -2

दर्श प्रभु के जो भी पाता, भव बंधन से वो तर जाता 
ब्रह्मज्ञानी करें उद्धार,  करो दर्शन हो जाओ भव पार ....

वाणी मधुर है चाल मधुर है, भक्तों में तेरा प्यार मधुर है 
करें मधुमय सारा संसार,  करो दर्शन हो जाओ भव पार ....

भक्ति बढ़ाते वचन तुम्हारे, श्रद्धा टिके जो तुमको निहारे 
बस मिलता रहे तेरा प्यार,  करो दर्शन हो जाओ भव पार ....

करुणामयी है स्वाभाव तुम्हारा, दीन - दुखी सब पायें सहारा 
मेरे ह्रदय बसों सरकार,  करो दर्शन हो जाओ भव पार ....

हम ना कभी तेरी राह से भटकें, माता के गर्भ में फिर से ना लटकें 
खुले मुक्ति का "शुभ" द्वार,  करो दर्शन हो जाओ भव पार ....

रचना: अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

भजन : मेरे गुरु हैं तारनहार

मेरे गुरु हैं तारणहार करते सबका बेडा पार
"शुभ" चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार

श्री मुख से बहती निर्मल ज्ञान धारा
गुरु चरणों में अब वैकुण्ठ हमारा
करने को प्रभु का दीदार, तरसे आँखें लगातार
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

मन से है नाम गुरु का जिसने उचारा
हुई दूर दुःख की छाया फैला उजियारा
करने भक्तों का कल्याण, खुद आये हैं भगवान्
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

जन्मों से दर-दर रहा मैं भटकता
काम क्रोध मोह कभी माया में अटका
अब तो जागे मेरे भाग्य, मिला बापू का दरबार
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

लेकर नाम तुम्हारा जीते हैं हम
मोह माया से अब बचाओ हमें तुम
जपते हरि ॐ- हरि ॐ आप, हम भी जपेंगे दिन रात
शुभ चरणों में मैं शीश झुकाऊं बारम्बार ....

रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

मातृ-पितृ पूजन दिवस कविता

एक दिन गणेश और कार्तिकेय में तात्विक वार्ता हुई थी,
दोनों में है कौन महान? यह बहस छिड़ी हुई थी
दोनों एक दूजे को अपनी महिमा सुना रहे थे
मैं बड़ा और मैं बड़ा, दोनों ही बता रहे थे
प्रश्न जटिल था, हल नहीं था, सोचा निर्णय कौन करे?
माँ पार्वती, पिता शिव से, जा अपनी दुविधा को कहे
माता पिता के पास जाके, दोनों ने यह पूछा
कृपया बताएं हम दोनों में है कौन सबसे ऊंचा?
माता पिता ने विचार किया, दोनों को अद्भुत कार्य दिया
पृथ्वी के सभी तीर्थों की, परिक्रमा कर जो पहले आयेगा
वही आप दोनों में, सबसे महान कहलायेगा
बिना विलम्ब कार्तिकेय निकल पड़े, अपने मोर वाहन पर
छोड़ मूषक वाहन, गणेश बैठे ध्यान लगा कर
पहुंचे गणपति ध्यान में गहरे, शास्त्रीय विचारों की उठने लगी लहरें
शास्त्र वचन ह्रदय में धारे, श्री मुख से अविलम्ब उचारे
"सर्व तीर्थमयी माता - सर्व देवमयी पिता",
शास्त्रों ने गाया है, ऊंचे हैं सबमें माता - पिता
स्नान आदि से निवृत हो, गणपति पहुंचे मात-पिता के पास
अर्घ्य-पाद से किया पूजन, नतमस्तक हुए "शुभ" चरणों के दास
शुद्ध ह्रदय से गणपति जी ने की परिक्रमा सात बार
लगे उचारने “वंदन है मात-पिता को बारम्बार”
बहुत प्रसन्न हुए मात पिता, देख पुत्र की भक्ति
पर पूछा क्या है बेटे - इस परिक्रमा की युक्ति?
गणपति बोले नम्र भाव से, शास्त्रों ने उदगार किया
जिसने पूजा मात- पिता को, उसे देवों ने सत्कार दिया
अतः आपकी परिक्रमा से, हुई परिक्रमा सभी तीर्थों की
साधुवाद देकर शिव पार्वती ने, स्वीकारी विजय गणेशजी की
उसी समय पहुचे कार्तिकेय कर, परिक्रमा पृथ्वी के तीर्थों की
विस्मित हुए देख गणेश को करते पूजन, मात-पिता के श्री चरणों की
कथा सुनी जब कार्तिकेय ने, अनुज गणेश की चतुराई की
प्रेम से गले लगाकर बोले, हुई हार मेरी चतुराई की
सुखद अंत हुआ वार्ता का, निर्णय निकला कितना सार
पुष्प-कुञ्ज श्री चरणों में समर्पित, बोले गणपति की जय जयकार
ह्रदय सम्राट श्री बापूजी ने यह, कथा हमें याद दिलाई है
मात-पिता के पूजन से, प्रेम दिवस की नयी परंपरा चलायी है
लाखों-लाखों विद्यार्थियों ने यह स्वीकारा है, मात-पिता के पूजन से जीवन में उजियारा है
हर वर्ष लाखों बालक ऐसा, अद्भुत पूजन दिवस मनाते हैं,
मात-पिता और बापू जी के, ह्रदय में अपनी जगह बनाते हैं
बापू जी की प्रेरणा से जग में, संस्कृति का सम्मान हो रहा
युवा वर्ग को मार्गदर्शन मिला, व्यसनों से निदान हो रहा
दृढ़ निश्चय आओ सभी करें, बापू के श्री वचनों पर चलें
कर मात- पिता का पूजन, हम प्रेम दिवस मनाएंगे
Valentine दिवस हटाकर, संस्कृति को बचायेंगे
१४ फरवरी को हमको यह, सौगात विश्व को देना है
मातृ-पितृ पूजन की प्रेरणा, रग-रग में भर देना है
धन्य धन्य हम भक्त बडभागी, जिन्हें गुरु, मात-पिता चरणों प्रीती लागी

हरि ॐ .... हरि ॐ .... हरि ॐ ....


रचना : अभिषेक मैत्रेय "शुभ"

दिवाली वर्ष २०१० पर दैवी कार्य

हरिओम ...

पूज्य सतगुरु स्मरण, पूज्य श्री की प्रेरणा और आशीर्वाद से श्री योग वेदांत सेवा समिति एवं युवा सेवा संघ मोदीनगर (उ. प्र) द्वारा इस दिवाली के पावन अवसर पर दरिद्र नारायणों के क्षेत्र में जाकर राशन एवं मिठाई वितरण सेवा कार्य आयोजित किया गया. मोदीनगर समिति द्वारा गत वर्षों की भांति इस बार भी भिन्न - भिन्न क्षेत्रों में दरिद्रों को एवं अनाथ आश्रम के बच्चों को राशन के साथ मिठाई भी बांटी गयी. सेवा कार्यों की कुछ झलकियाँ फोटो के रूप में आपको भेजी जा रही हैं.

आप यह फोटो संग्रह इस लिंक पर भी प्राप्त कर सकते हैं. :

सबका मंगल सबका भला .....

भजन : छवि तेरी प्रगट होती

भजन : छवि तेरी प्रगट होती

मेरी गिनती मेरी विनती, तुम्ही से ही शुरू होती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

सुखी जीवन के तुम आधार, सदा करते हो भाव से पार
चरण धूलि जो आँखों में, लगा लूँ तो बने ज्योति
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

गुरुवर आपने अपने ह्रदय में, एक जगह दे दी
बड़ी किरपा की वरना तो, मेरी किस्मत ही थी सोती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

करूँ चिंतन सदा तेरा, बने ऐसा ही मन मेरा
ह्रदय बन जाये गुरुद्वारा, वाणी हो जाये गंगोत्री
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

गुरुवर परम हितैषी हैं, यह वेदों ने बताया है
दिया शुभ आत्म का आनंद, किया कंकड से मुझे मोती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....  

रचना: अभिषेक मैत्रेय शुभ

भजन : छवि तेरी प्रगट होती

भजन : छवि तेरी प्रगट होती

मेरी गिनती मेरी विनती, तुम्ही से ही शुरू होती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

सुखी जीवन के तुम आधार, सदा करते हो भाव से पार
चरण धूलि जो आँखों में, लगा लूँ तो बने ज्योति
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

गुरुवर आपने अपने ह्रदय में, एक जगह दे दी
बड़ी किरपा की वरना तो, मेरी किस्मत ही थी सोती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

करूँ चिंतन सदा तेरा, बने ऐसा ही मन मेरा
ह्रदय बन जाये गुरुद्वारा, वाणी हो जाये गंगोत्री
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

गुरुवर परम हितैषी हैं, यह वेदों ने बताया है
दिया “शुभ” आत्म का आनंद, किया कंकड से मुझे मोती
जहाँ तक जाए मेरी दृष्टि, छवि तेरी प्रगट होती....

रचना: अभिषेक मैत्रेय “शुभ”